सब्सिडी किसान नहीं खा रहे अपितु सब्सिडाईज्ड फूड आप और हम खा रहे हैं:
मोटा मोटी मान कर चलो कि स्वामिनाथन रिपोर्ट (306 व् बहुत सी अन्य गेहूं की किस्मों के जनक कृषि वैज्ञानी चौधरी रामधन हुड्डा जी के शोधों व् रिसर्चों पर आधारित है यह रिपोर्ट| हिसार सीसीएस एचएयू में हुड्डा जी के नाम की रिसर्च बेंच भी है) 2008 में लागू होनी थी| मान लो तब से यह रिपोर्ट लागू होती तो सिर्फ गेहूं-चावल-गन्ना पर एक किसान देश को कितनी सब्सिडी खिला चुका है, देखिये “सर जगमाल सिंह चहल” की निम्नलिखित मोटी-मोटी कॅल्क्युलेशन्स के जरिये:
1) 2008 से 2017, 10 साल में औसतन 27 करोड़ किवंटल गेहूं भारतीय किसान सालाना पैदा करके दे रहा है, जिसपे स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू ना होने से किसान को प्रति किवंटल न्यूनतम 300 रूपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है| 10 साल में इसका कुल हुआ 27 × 10 × 300 = 81000 करोड़ रूपये| जो कि मिलना चाहिए था किसान को परन्तु इसको सब्सिडाइज़्ड फ़ूड के रूप में खा रहा है आप-हम जैसा आम उपभोक्ता|
2) ऐसे ही धान मे भी पिछले 10 साल मे तकरीबन खरीद के आधार पर 100000 करोड़ रू का नुकसान हुआ किसान को|
3) गन्ने की खरीद – औसतन 250 करोड़ किंव्टल, कीमत अंतर 100 रू प्रति किंव्टल, पिछले 10 साल का हुआ, 250 × 10 × 100 = 250000 करोड़ रू|
केवल इन तीन चीजों का ही कुल 250000 + 81000 +100000 = 431000 करोड़ रूपये
बाकी दाल, तिलहन, फल, सब्जी, बीज इन सबका अलग| कुल मिला कर यह मामला 10 लाख करोड़ पर टिकता है|
किसान कर्ज मे डूब कर तुम को सस्ते मे गेहूं, चावल, चीनी, दाल, तेल, सब्जी, फल दे रहा है| एक किस्म से सब्सिडी किसान नहीं खा रहे, सब्सिडाईज्ड फूड आप लोग खा रहे हैं|
अरबापति भी, बच्चन भी, तेंदूलकर भी, शाह भी, मोदी भी, राहुल भी, प्रियंका चोपड़ा भी और मैं भी, तुम भी, मीडिया भी सब किसान का सब्सिडाईजड फूड खा रहे हैं|
सरकार और आप कर्जदार हैं किसान के| कर्जा वसूली करेगा वो या आप उसका कर्ज उतार दो| आंकड़ों मे 19 या 20 का फर्क हो सकता है| बात भेज्जे मे घुसाने से मतलब है|
यह शहरों में प्राइवेट-सरकारी दोनों तरह के सेक्टर्स में बैठे कुछ सिरफिरे और कुछ ऐसे ही राजनेता, व्यापारी लोग व् अफसर लोग, जो किसानों को भिखारी बोल रहे हैं; उनको समझना चाहिए कि किसान तो उल्टा आपके सस्ते खाने के लिए सब्सिडी भर रहा है, वह भिखारी कैसे हुआ?
अरे यह पीछे का तो छोड़ो, किसानों को तो उनके उत्पाद का विक्रय मूल्य खुद निर्धारित करने का ही मौका दे दो, जो ना अगर दो-चार साल में ही मात्र एक अडानी जितने कर्जे के कुल के बराबर का कर्जा जो किसान के सर आज है वो भी उतार दे और फिर सरप्लस भी ना कर दे तो देश की इकॉनमी को|
अडानी-अम्बानी-सहारा-मेहता-रहेजा आदि तो तब लाखों करोड़ के कर्जदार हैं जब खुद के प्रोडक्ट का सेल्लिंग प्राइस भी खुद निर्धारित करके बेचते हैं, और किसान कर्जदार तब है जब यह हक़ उसके पास नहीं| दिमाग क्या चीज होती है और क्या इकॉनमी में कंट्रीब्यूशन होता है, एक बार किसान को दो-चार साल के लिए ही सही, परन्तु सेल्लिंग प्राइस का राइट दे के देखो|
फैक्ट्स एंड कॅल्क्युलेशन्स सोर्स: Sir Jagmal Singh Chahal
जय यौद्धेय!
Dishu malhi
says on:Absolutely right sir