GST and Farming

GST और किसान दोनों से संबंधित नॉलेज की चैरिटी का वक्त आन पहुंचा है:

GST से व्यापारी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि जो बढ़ा है वो उसको ग्राहक के ही पल्ले डालेगा| बस साल-छह महीने में व्यापारी के लिए समझो GST था ही नहीं| मजदूर भी अपनी दिहाड़ी GST के अनुसार बढ़ा लेगा|

असली बात है किसान की, जो और कमर टूटेगी और बोझ पड़ेगा वो किसान पर पड़ेगा| किसानों के बच्चों और वंशों (खासकर जो शहरों में आते-जाते हैं, पढ़ते हैं या यहाँ तक कि जो शहरों में बसते हैं) को चाहिए कि वो व्यापारियों को देखें-समझें-परखें और जानें कि कैसे कॉस्ट ऑफ़ प्रोडक्शन में डाल के GST जैसे बोझ दूसरों पर सरका दिए जाते हैं|

फिर उनसे कुछ किसानी के लिए (जो कि मिलेगा पक्के से) काम का लगे तो अपने माँ-बाप-पड़ोसी किसानों तक पहुँचाया जाए| चैरिटी सिर्फ पैसे से ही नहीं होती, सबसे बड़ी चैरिटी नॉलेज की होती है| अगर आप यह कार्य करेंगे तो हजारों-लाखों रूपये दान देने से भी बड़ा चैरिटी करेंगे| और इंटरनेट और सोशल मीडिया की ताकत ने यह करके दिखाया है|

खाली इसका दिखावे मात्र विरोध करने वालों की पोस्टों को लाइक करके इसका विरोध करने की ख़ुशी भर से किसान के घर से जो अब बढ़ी हुई वसूली होनी है, वो खत्म नहीं हो जाएगी|

मुझे इस वक्त इसका जो हल दिखता है वह है किसानी से संबंधित व्यापारिक कानूनों को समझ के उनके तहत अपनी किसानी को कारोबार की शक्ल देना| क्योंकि हर तरह के टैक्स की मार तो किसान वैसे भी झेल रहा है और कारोबारी बन गया तो फिर भी झेलेगा| कम से कम कारोबारी बनने पर यह तो समझ आएगा कि अपने उत्पाद का विक्रय मूल्य खुद निर्धारित करूँ और GST को उसमें जोड़ के माल बेचूं या सप्लाई करूँ|

किसानों को अब इसमें वैसे भी उतरना पड़ेगा| तो लाजिमी है कि वक्त रहते यह कर लिया जाए, वर्ना सरकार तो आपको आपके ही खेतों में कॉर्पोरेट खेती के सहारे मजदूर की हैसियत तक सिकोड़ने हेतु आमादा नजर आती है| अगर कोई इस धोखे में है कि हिंदूवादी सरकार है और तुम हिन्दू किसान हो तो तुमको कोई रियायत मिल जाएगी, ना-ना सबसे बड़ा शिकंजा तो तुम हिन्दू किसानों पर ही है| 21वीं सदी के गरीब से भी गरीब आपको ही बनाने की पूरी तैयारी चल रही है, अगर वक्त रहते नहीं चेते तो|

इसलिए जितना हो सके उतना इसपे नॉलेज और सोलुशन शेयरिंग की चैरिटी की जाए|

जय यौद्धेय!

 

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