बढती यौन-अपराध वृति इस जिहाद की सफलता
एक निचोड़ की बात उभरती हैः वर्ष 1947 में हासिल आजादी के बाद की पांच दशकों की काल अवधि में तीब्रता से खड़े हुए मिथकों की बदौलत राजनीतिक दल/नेताओं, अखबारों/मीडिया, पढे-लिखों व ग्रामीण क्षेत्र...
एक निचोड़ की बात उभरती हैः वर्ष 1947 में हासिल आजादी के बाद की पांच दशकों की काल अवधि में तीब्रता से खड़े हुए मिथकों की बदौलत राजनीतिक दल/नेताओं, अखबारों/मीडिया, पढे-लिखों व ग्रामीण क्षेत्र...
संस्था व खाप प्रकृति से भिन्न कुछ स्वयंभूओं को छोड़ कर आज तक खाप प्रणाली पर ऐसा कोई भी लांछन नहीं लगा कि इतनी सुदृढ़, स्वच्छ व् सामाजिक व्यवस्था प्रशनचिन्ह के दायरे में...
मिथकों की दुनिया खाप शब्द से ही चिड़ने वालो का तर्क सीधा है. उनका कहना है कि खाप प्रणाली बीते ज़माने कि सामंती प्रथा है जिससे गॉव के गंवार लोग बेमतलब चिपटे बैठे हैं...
चर्चा का सन्दर्भ खाप को लेकर है। प्रश्न यह है कि खाप को संस्था/सभा मानकर चर्चा हो अथवा उसे ग्रामीण भारत के लोगों की जीवनशैली समझा जाए; उसे उनका एक रिवाज, जीवन पद्धति माना...
सवाल खाप का हमें यहाँ (भारत मैं) एक ऐसा वर्ग खड़ा करने में वह सब करना चाहिए जिसे कर सकते हों, जो हमारे और उन करोड़ो लोगों के बीच दुभाषिया का काम करेंगे जिन...