दुर्गा-पूजा, नवरात्रे, दशहरा और साँझी!

(देशज त्यौहार बनाम विदेशज त्यौहार)

विशेष: इस लेख का उद्देश्य हरयाणवी मूल के नागरिकों को उनके अपने देशज त्यौहार बारे बताना है। मुझे किसी त्यौहार और किसी की श्रद्धा से कोई हर्ज नहीं और उम्मीद करूँगा कि ऐसे ही मेरी बातों और श्रद्धा से किसी पाठक को कोई हर्ज नहीं होगा। अब लेख पे आगे बढ़ता हूँ।

चारों पर्वों में समानता:
1) दुर्गा पूजा और नवरात्रे नौ-नौ दिन मनाये जाते हैं।
2) दशहरा और सांझी दस दिन मनाये जाते हैं।
3) चारों को मनाने का महीना-वक्त-शुरुवाती दिन एक समान हैं।

चारों पर्वों में भिन्नता:
1) हर्याणवियों के पक्ष से सिर्फ सांझी ही हमारा देशज त्यौहार है, बाकी के तीनों विदेशज त्यौहार हैं। देशज और विदेशज शब्द का यहां ठीक वही प्रयोग है जो हिंदी व्याकरण और भाषा में शब्दों के प्रकार बताते हुए बताया जाता है। यानी अपनी भाषा के शब्दों को देशज और दूसरी भाषाओँ से हिंदी भाषा में आये शब्दों को विदेशज बोलते हैं।
2) चारों त्योहारों में सिर्फ साँझी अकेला वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है बाकी तीनों माइथोलॉजी यानी काल्पनिक इतिहास पर आधारित हैं।
3) साँझी में ना व्रत रखने, ना भूखा मरना और ना ही आडम्बर पूजने। शुद्ध वास्तविक एवं व्यवहारिक मान्यताओं में हमारी श्रद्धा व् आदर बना रहे उसके लिए मनाया जाता है।

चारों की अलग-अलग ख़ास और विचित्र बातें:

दुर्गा-पूजा: मुख्यत: बंगाल का त्यौहार है। जबसे बंगाली शरणार्थी दिल्ली-एनसीआर-हरयाणा में आ के बसे हैं तब से यहां जाना जाने लगा है क्योंकि यह हरयाणवियों के जैसे नहीं हैं कि गाँव से मात्र बीस-तीस किलोमीटर शहर में भी क्या आन बसे कि अपने त्योहारों तक को तिलांजलि दे देते हैं। और दो पैसे का जुगाड़ हो के आर्थिक आधार पर थोड़े एडवांस क्या हुए कि लगते हैं त्यौहारों में भी एडवांसपना दिखाने। अंत में हालत वही होती है कि धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का। और यही ढेढस्यानपने वाला एडवांसपना होता है जिसकी वजह से तुच्छ लोग भी हरयाणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाते हैं।

नवरात्रे: गुजरात के गुजरती और पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों का मुख्य त्यौहार है। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में इसको पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों ने ही यहां आ के मनाना शुरू किया। और आज आलम यह है कि आर्थिक एडवांसमेंट के मारे हरयाणवी तक अपनी “सांझी” को छोड़ इसको मना रहे हैं वो भी बावजूद यह जानने के कि इन्हीं के समाज का सबसे बड़ा नुमाइंदा हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाता है। बात सही भी है जिनको अपने परम्परागत त्यौहारों तक को संजो के रखने की सुध नहीं तो उनको फिर कोई कुछ भी कह ले।

दशहरा: अवध-अयोध्या का त्यौहार है। देश की आज़ादी के बाद स्थानीय हरयाणवी त्योहारों व् सभ्यता को खत्म करवाने हेतु यहां रामलीलाओं के जरिये इसको फैलाया गया। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में रामलीलाओं का चलन बस इतना ही पुराना है जितना कि देश की आज़ादी। इससे पहले हमारे यहां मुख्यत: शिव, हनुमान व् कान्हा के ही तीज-त्यौहार मनाये जाते थे।

सांझी: सांझी सम्पूर्णत: वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है। प्राचीनकाल से ही हरयाणा में दुल्हन जब पहली बार ससुराल जाती थी तो वो पहले आठ दिन ससुराल में रहती थी और नौवें दिन उसका भाई उसको लिवाने जाता था जो कि चलन में तो आज भी है। सांझी के बारे इससे आगे विस्तार से हरयाणवी भाषा में लिखूंगा जो कि ऐसे है:

सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळआ त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|

पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जाया करदा।

आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं एक तो श्राद (कनागत) खत्म हो ज्यां सें अर दूसरा ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया करदा/जा सै।

के हो सै सांझी का त्युहार: जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।

सांझी नैं बनाण का सामान: आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|

सांझी बनाण का मुहूर्त: जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।

सांझी के भाई के आवण का द्यन: आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|

दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई: इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गंदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।

उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|

भ्रान्ति: सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या तैं आया त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|

 

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